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उद्योग सूत्रों के मुताबिक इस समय देश में करीब 30 लाख टन डीएपी का स्टॉक है जबकि खरीफ सीजन में खपत करीब 50 लाख टन होती है। इसलिए अगर समय रहते और आयात नहीं होता है तो उससे आगामी खरीफ सीजन में उपलब्धता पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है। इसलिए सरकार को एनबीएस के तहत डीएपी और दूसरे कॉम्प्लेक्स उर्वरकों पर सब्सिडी बढ़ाने में देरी नहीं करनी चाहिए रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध के चलते वैश्विक बाजार में डाई अमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) और उसके लिए जरूरी कच्चे माल फॉसफोरिक एसिड की ऊंची कीमतों के चलते ताजा कीमतों पर आयात…
समस्तीपुर। जिले के लिए बजट 2022 मील का पत्थर साबित हो सकता है। छह सूत्री आधारित बिहार के पेश किये गये बजट में कृषि पर फोकस किया गया है जिससे कृषि प्रधान जिला होने के कारण इसका पूरी तरह से समस्तीपुर को जिले के किसानों को लाभ मिलेगा। विदित हो कि कृषि के क्षेत्र में वित्त वर्ष 2022-23 में 29 हजार 749 करोड़ रुपए कृषि का बजट है। इसका लाभ कृषि से जुड़े लोगों को होगा। किसानों के हर खेत तक पानी पहुंचाने के लिए चार विभागों को अलग से पैसा दिया गया है। जल संसाधन, लघु जल संसाधन, सहकारिता…
डीएपी और एमओपी दोनों की बिक्री ने मौजूदा रोपण सीजन में वैश्विक कीमतों में आसमान छूती कीमतों के कारण भारी गिरावट दर्ज की है, जिसके परिणामस्वरूप आयात में कमी आई है। ऐसा लगता है कि उर्वरकों की रिकॉर्ड अंतरराष्ट्रीय कीमतों ने भारतीय किसानों को अधिक विविध और संतुलित पौधों के पोषक तत्वों के उपयोग के लिए मजबूर किया है। यह मौजूदा रबी फसल मौसम में जटिल उर्वरकों और सिंगल सुपर फॉस्फेट (एसएसपी) की अधिक बिक्री से पैदा हुआ है, जो कि अधिक लोकप्रिय डाइ-अमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) और म्यूरेट ऑफ पोटाश (एमओपी) की व्यापक कमी के बीच है। जटिल उर्वरकों की खुदरा…
काले गेहूं की बुवाई समय से एवं पर्याप्त नमी पर करना चाहिए. देर से बुवाई करने पर उपज में कमी होती है. जैसे-जैसे बुवाई में विलम्ब होता जाता है, गेहूं की पैदावार में गिरावट की दर बढ़ती चली जाती है. दिसंबर में बुवाई करने पर गेहूं की पैदावार 3 से 4 कु0/ हे0 एवं जनवरी में बुवाई करने पर 4 से 5 कु0/ हे0 प्रति सप्ताह की दर से घटती है. गेहूं की बुवाई सीडड्रिल से करने पर उर्वरक एवं बीज की बचत की जा सकती है. काले गेहूं की उत्पादन सामान्य गेहूं की तरह ही होता है. इसकी उपज…
इस प्रकार, मृदा संरक्षण रणनीतियाँ पर्यावरण और संसाधनों की स्थिरता में बहुत योगदान देती हैं। मृदा संरक्षण क्या है और यह किस पर केंद्रित है? मृदा संरक्षण विशेष रूप से क्षरण, क्षरण और कमी से बचने के लिए कृषि तकनीकों और प्रथाओं का एक समूह है । मृदा संरक्षण के तरीके भविष्य के विचार के साथ दीर्घकालिक उपयोग को लक्षित करते हैं। उचित और समय पर कार्रवाई करके, किसान आने वाले वर्षों के लिए अपने खेतों के प्रदर्शन को बढ़ावा देते हैं। मिट्टी के संरक्षण का एक प्रमुख उद्देश्य पर्यावरण-समुदायों में रहने वाली अपनी जैव विविधता को बनाए रखना है जो अपने तरीके से इसकी उर्वरता में योगदान करते…
ऑर्गेनिक फार्मिंग’ जैविक खेती कृषि की वह पद्धति है, जिसमें पर्यावरण को स्वच्छ प्राकृतिक संतुलन को कायम रखते हुए भूमि, जल एवं वायु को प्रदूषित किये बिना दीर्घकालीन व स्थिर उत्पादन प्राप्त किया जाता है। इस पद्धति में रसायनों का उपयोग कम से कम व आवश्यकतानुसार किया जाता है। दीर्घकालिक परिप्रेक्ष्य में, उत्तर प्रदेश को एक जैविक और प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने वाला राज्य बनाने का राज्य सरकार का प्रयास है। उत्तर प्रदेश में जैविक खेती बढ़ाने के लिए अपने सुझाव / विचार साझा करें।
– श्री राधा मोहन सिंह, कृषि तथा किसान कल्याण मंत्री, भारत सरकार किसान देश की जीवन रेखा हैं और किसी भी देश का विकास उसके कृषि क्षेत्र के विकास के बिना अधूरा है । देश की खाद्य सुरक्षा को सतत आधार पर सुनिश्चित करने का श्रेय हमारे किसानों को ही जाता है । आज वस्तुस्तिथि यह है कि भारत न केवल बहुत से कृषि उत्पादों में आत्म निर्भर व् आत्म संपन्न है वरन बहुत से उत्पादों का निर्यातक भी है इन सत्यो के साथ यह भी सच है कि किसान अपने उत्पादों का लाभकारी मूल्य नहीं पाते हैं। अत: सरकार…